Tuesday, August 31, 2010

ईश्वर का मंदिर दर्शन

आज ईश्वर ने स्वयं के शुभप्रभात की सुध ली,
मंदिर में भक्तों को आशीष बाँटने के कार्यक्रम से आगे की गिनती की,

एक महानुभाव ने अपनी पुरानी पादुका छोड़ दूसरे की नयी उड़ाई
और साथ ही गुहार लगाई ..प्रभु आज बचा लो और कल का प्रसाद पक्का
पचास की चप्पल में पच्चीस मेरा पच्चीस मोटे पण्डे का हिस्सा,
आपके मंदिर का ही भला होगा..और इस मंहगाई में इक जोड़ी चप्पल से क्या भला होगा
भगवन भक्त की इच्छा पूरी करो आज के चड़ाए बताशे का कुछ तो ध्यान धरो !

आगे की घटना और भी विचित्र है मंदिर के पुजारी की जेब में वी आई पी भक्तों का घूस है,
जल्दी दर्शनों के लिए यह रास्ता भी उपयुक्त है आखिर कलयुग में ईश्वर के लिए समय निकलना भी कष्ट है
अजीब भ्रम ही स्थिति है भाई अब तो सेठ जी की काली कमाई को गोरा बनाना है
और थुलथुल ह्रदय रोगी को लम्बी आयु वरदान भी अजमाना है!

सीडियों पर जमा भिखारी भी त्रस्त है आज का हर भक्त अवसाद ग्रस्त है
हर कोई अपनी समस्यायों में उलझा है और सारा गुस्सा बिचारे दीन-हीन पर निकलता है ,
पर यह भी महोदय कुछ कम नही जिद करके इक का दो रुपया करवाते है
और चडावे के चार आने भी लाख वादों के बाद भी ईश्वर तक नहीं जाते है!

पंक्ति में कड़ी अस्सी वर्षीय महिला में नवयुविका जितना जोश है
हाथ का नारियल अगर सामने वाले के सर के टकरा के फूटे तो इनका क्या दोष है
घुटनों ने जवाब दिया है मन ने नहीं
ईश्वर की कृपा से रबरी खाने इससे बेहतर मौका और कहीं नहीं
इनका भी मामला खासा गंभीर है; जबान पे है मिठाई और शुगर से बचने का अनुरोध है !

प्रभु अब अपने इस सवेरे से परेशान है ,
सोचते है किसकी विनय माने और किसको दंड का भागी बनाये
दुनिया के रंग भी निराले है,
जो ईश्वर को दुविधा में दाल दे वह हम आपको क्या छोड़ेगी
पाप की दुपहरी में नैतिकता कितना मूल्य जोड़ेगी
अपने चुनाव पे अड़े रहिये और जितना कर पाए देवों को भ्रमित करिए ॥

जीवनबाला

कुछ तोल-मोल की बातों में अनमोल वचन मिल जाते है,
हम रह जाते है ठगे जैसे वह मुस्काते चले जाते है,

विचलित मर्यादा का बंधन है वह धीर धरे सकुचाती है,
हम मोहपाश में बंधे हुए जाने किधर खिंचे जाते है,

चेहरे पर स्वर्णिम तेज सजा नैनों की बिजली घात करे,
निष्कपट वेग वह स्वासों का बिनमोल बिके चले जाते है,

माथे पर लिपटे स्वेदकण वायु के कम्पन से टकराते,
झिलमिल से अधरों की थिरकन कुछ और व्यथित कर जाते है,

यह जीवन रुपी बाला है अगणित मोहक से रूप धरे,
हम लाख हताश हो जाये कहीं यह पुनः सम्मोहित कर जाती है,
यह पुनः सम्मोहित कर जाती है|

Tuesday, August 3, 2010

दस्तक

नाज़ुक सी निगाहों में अनजान फसाना है; दिल पे कोई दस्तक है यह ख्वाब पुराना है ,
हम ढूंढते जिसको है ; वो अफ्सानो का पुतला है ,
कभी ख्वाब हकीकत है ; कभी हकीकत इक फ़साना है ,
मसरूफ सी ज़िन्दगी का ; अधूरा सा यह बहाना है ,
फिर वक़्त की तंगी है ; फिर वक़्त बेगाना है |
नाज़ुक सी निगाहों में अनजान फसाना है; दिल पे कोई दस्तक है यह ख्वाब पुराना है ,
आज छोड़ के सब बंधन ; दिल से इक साज़ चुराना है ,
फिर रूह को आज अपनी इक ताल पे इतराना है ,
कुछ दर्द छुपाने है ; कुछ दर्द तराना है ,
यूँ राहे आशिकी की मंजिल तक जाना है |
नाज़ुक सी निगाहों में अनजान फसाना है; दिल पे कोई दस्तक है यह ख्वाब पुराना है |

Wednesday, May 5, 2010

अस्तित्व

एकांत वह, जिसमे स्वयं की आवाज गूँज जाये;
अभिमान वह, जो मान को आत्मसार कर ले;
अनुलोम वह; जो विलोम को विलीन कर दे,
शांति वह; जो विस्फोट को आत्मसात कर ले,
अनुरोध;वह जो हर विरोध को लुप्त करे,
आदि वह; जो अंत का ह्रास करे,

वह भान रहे ; जो ज्ञान बने,
वह प्रश्न रहे; जो समाधान बने,
वह अंधकार रहे; जो मेघ बने,
वह ज्वाला रहे; जहाँ सूर्य बने,
वह अस्तित्व मिले जहाँ नश्वरता का नाश रहे |

Friday, April 2, 2010

बुड्डा पहाड़ ढोता है ..

बुड्डा पहाड़ ढोता है ।

भूत, वर्तमान, भविष्य का आधार ढोता है ,
पीढ़ियों के अस्तित्व का भर ढोता है ,
बुड्डा पहाड़ ढोता है

नारकीय जीवन पर म्रत्यु का प्रहार ढोता है,
अगढ़ित से संस्कार, वस्तुतः संसार ढोता है ,
बुड्डा पहाड़ ढोता है

समय का अत्याचार, समाज का तिरस्कार,
मृत अधिकार, अनंत कर्त्तव्य का साम्राज्य ढोता है ,
बुड्डा पहाड़ ढोता है

तन पर लपेटे इक सूत, आठों प्रहर का हर आघात ,
धरती की गहराई और आकाश का विस्तार ढोता है ,
बुड्डा पहाड़ ढोता है

Thursday, March 18, 2010

गर्द

वो झरोखे जो कल तक रौशनी का इस्तेकबाल करते थे,
हवा ने उनको गर्द से भर दिया ,
जाने कैसे मौसम बदले,
अंगीठी की आंच ने मौसम सर्द कर दिया|

आज की बारिश ने चंद छीटें उड़ाई ,
पर जाने किसी किरण ने बादलो को सतरंगा कर दिया|

शम्मा जो कभी पिघल के न कर सकी ,
नींद भरी आँखों के ख़्वाबो ने रात को रोशन कर दिया |

हम हारते रहे इक जीत की उम्मीद में ताउम्र ,
वो जीत यूँ मुक्कमल रही कि, हर उम्मीद को ख़तम कर दिया |

Monday, February 8, 2010

मन इक द्वंद है..

मन इक द्वंद है ; आदि है अनंत है,
मन इक द्वंद है ॥
आत्मा की प्रतिष्ठा में परमानंद है ,
मन इक द्वंद है
व्यव्हार की कुशलता में ; जीवन की विवशता में ,
भावनाओ की चंचलता में;
विकट विरल चपल छंद है ,
मन इक द्वंद है

जिजीविषा के योग में,
आध्यात्म के मोह में,
अविरल बहता विहंग है ,
मन इक द्वंद है

सरिता सा निर्झर,
गरिमा सा कोमल,
सर्वज्ञ कितु विचलित ,
अपूर्ण सा मर्म है ,
मन इक द्वंद है

कद

दिये को कद से नहीं हद से नापते है,
मकसद को वक़्त की सरहद से नापते है ,
जो खो गए मंजिलो की तलाश में,
उनके जूनून की शिद्दत को नापते है|

फर्क पड़ता नहीं चरागों की रौशनी से ,
हवा के रुख को लौ की झिलमिलाहट से जांचते है ,
रेत का यूँ उड़ना अखरता नहीं ,
आँख की तपिश को किरकिरी से जांचते है |

जो खो गए सपने ज़िन्दगी की कशमकश में,
यादों को अक्सर उम्मीद की गहराइयों से नापते है,
चाहतो का सिला कामयाबी हो ये ज़रूरी तो नहीं,
उल्फत को दिल्लगी की चादर से कब डांकते,
ज़िन्दगी अक्सर उनके कदम चूमती है ,
जो उचायिओं को गहराईयों से नापते है |

Friday, February 5, 2010

मैं " समय"

सत्य की निष्ठा और झूट की पराकास्था के मध्य जूझता मैं " समय"
किवदंती कथानक का अमरत्व प्राप्त किये जीवन सिंचित करता मैं "समय"
व्यक्तिगत प्रेम और सामूहिक डाह की अग्नि में झुलसता मैं "समय"
मैं बलवान, मैं क्रूर, मैं आध्यात्म, मैं अनुकूल, मैं प्रतिकूल, मैं "समय"
आदि से अंत की धुरी पर घूमता मैं "समय"
यथार्थ से कल्पन के पंखो पैर उड़न भरता मैं "समय"
जीवन का दंश और मृत्यु की अमरता के गूढ़ रहस्यों में खोया मैं "समय"
मैं पराक्रमी किन्तु निर्बल, मैं निरीह, मैं तुछ्य, मैं विराट, मैं नगण्य
जीवन का अविरल प्रवाह, प्राणवायु सा बहेता मैं "समय"

इत्तेफाक

आज का इत्तेफाक अजीब था,
कल का अंदाज़ दिल के करीब था,
कुछ यादें जो रूबरू अक्सर होती है,
आज उनका जिक्र बेतरतीब था ,
वो आइना तो आज सामने था,
पर उसमें दिखता वो चेहरा कुछ अजीब था |