Thursday, March 18, 2010

गर्द

वो झरोखे जो कल तक रौशनी का इस्तेकबाल करते थे,
हवा ने उनको गर्द से भर दिया ,
जाने कैसे मौसम बदले,
अंगीठी की आंच ने मौसम सर्द कर दिया|

आज की बारिश ने चंद छीटें उड़ाई ,
पर जाने किसी किरण ने बादलो को सतरंगा कर दिया|

शम्मा जो कभी पिघल के न कर सकी ,
नींद भरी आँखों के ख़्वाबो ने रात को रोशन कर दिया |

हम हारते रहे इक जीत की उम्मीद में ताउम्र ,
वो जीत यूँ मुक्कमल रही कि, हर उम्मीद को ख़तम कर दिया |

3 comments:

  1. Love this one, specially
    "पर जाने किसी किरण ने बादलो को सतरंगा कर दिया|
    नींद भरी आँखों के ख़्वाबो ने रात को रोशन कर दिया"

    Its so great to read you :)

    ReplyDelete
  2. Thanks Pavan,
    Thanks @ Neha..
    I am glad u liked it..

    ReplyDelete