Monday, February 8, 2010

मन इक द्वंद है..

मन इक द्वंद है ; आदि है अनंत है,
मन इक द्वंद है ॥
आत्मा की प्रतिष्ठा में परमानंद है ,
मन इक द्वंद है
व्यव्हार की कुशलता में ; जीवन की विवशता में ,
भावनाओ की चंचलता में;
विकट विरल चपल छंद है ,
मन इक द्वंद है

जिजीविषा के योग में,
आध्यात्म के मोह में,
अविरल बहता विहंग है ,
मन इक द्वंद है

सरिता सा निर्झर,
गरिमा सा कोमल,
सर्वज्ञ कितु विचलित ,
अपूर्ण सा मर्म है ,
मन इक द्वंद है

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