कुछ तोल-मोल की बातों में अनमोल वचन मिल जाते है,
हम रह जाते है ठगे जैसे वह मुस्काते चले जाते है,
विचलित मर्यादा का बंधन है वह धीर धरे सकुचाती है,
हम मोहपाश में बंधे हुए जाने किधर खिंचे जाते है,
चेहरे पर स्वर्णिम तेज सजा नैनों की बिजली घात करे,
निष्कपट वेग वह स्वासों का बिनमोल बिके चले जाते है,
माथे पर लिपटे स्वेदकण वायु के कम्पन से टकराते,
झिलमिल से अधरों की थिरकन कुछ और व्यथित कर जाते है,
यह जीवन रुपी बाला है अगणित मोहक से रूप धरे,
हम लाख हताश हो जाये कहीं यह पुनः सम्मोहित कर जाती है,
यह पुनः सम्मोहित कर जाती है|
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