अब तो ईमेल पे हो जाया करती है बातें, हाँथो में कलम पकड़ना कुछ भूल गए
एक अदना कागज़ पे दिल निकाल के रखने वाले, अब दिल्लगी भी भूल गए |
सर्द रात है स्याह से अफ़साने, गली के मोड़ पे लोग अलाव जलना भूल गए
हम गुज़रे ज़रूर फिर उन्हीं रास्तों से, बस आप से नज़रे मिलाना भूल गए |
यूँ मसरूफ हुए उनके किस्सों में, हम अपनी दास्ताँ सुनाना भूल गए
चाहिए था कुछ वक़्त अपने लिए ज़िन्दगी से, बस जीने के बहाने भूल गए |
एक अदना कागज़ पे दिल निकाल के रखने वाले, अब दिल्लगी भी भूल गए |
सर्द रात है स्याह से अफ़साने, गली के मोड़ पे लोग अलाव जलना भूल गए
हम गुज़रे ज़रूर फिर उन्हीं रास्तों से, बस आप से नज़रे मिलाना भूल गए |
यूँ मसरूफ हुए उनके किस्सों में, हम अपनी दास्ताँ सुनाना भूल गए
चाहिए था कुछ वक़्त अपने लिए ज़िन्दगी से, बस जीने के बहाने भूल गए |