Monday, February 8, 2010

मन इक द्वंद है..

मन इक द्वंद है ; आदि है अनंत है,
मन इक द्वंद है ॥
आत्मा की प्रतिष्ठा में परमानंद है ,
मन इक द्वंद है
व्यव्हार की कुशलता में ; जीवन की विवशता में ,
भावनाओ की चंचलता में;
विकट विरल चपल छंद है ,
मन इक द्वंद है

जिजीविषा के योग में,
आध्यात्म के मोह में,
अविरल बहता विहंग है ,
मन इक द्वंद है

सरिता सा निर्झर,
गरिमा सा कोमल,
सर्वज्ञ कितु विचलित ,
अपूर्ण सा मर्म है ,
मन इक द्वंद है

कद

दिये को कद से नहीं हद से नापते है,
मकसद को वक़्त की सरहद से नापते है ,
जो खो गए मंजिलो की तलाश में,
उनके जूनून की शिद्दत को नापते है|

फर्क पड़ता नहीं चरागों की रौशनी से ,
हवा के रुख को लौ की झिलमिलाहट से जांचते है ,
रेत का यूँ उड़ना अखरता नहीं ,
आँख की तपिश को किरकिरी से जांचते है |

जो खो गए सपने ज़िन्दगी की कशमकश में,
यादों को अक्सर उम्मीद की गहराइयों से नापते है,
चाहतो का सिला कामयाबी हो ये ज़रूरी तो नहीं,
उल्फत को दिल्लगी की चादर से कब डांकते,
ज़िन्दगी अक्सर उनके कदम चूमती है ,
जो उचायिओं को गहराईयों से नापते है |

Friday, February 5, 2010

मैं " समय"

सत्य की निष्ठा और झूट की पराकास्था के मध्य जूझता मैं " समय"
किवदंती कथानक का अमरत्व प्राप्त किये जीवन सिंचित करता मैं "समय"
व्यक्तिगत प्रेम और सामूहिक डाह की अग्नि में झुलसता मैं "समय"
मैं बलवान, मैं क्रूर, मैं आध्यात्म, मैं अनुकूल, मैं प्रतिकूल, मैं "समय"
आदि से अंत की धुरी पर घूमता मैं "समय"
यथार्थ से कल्पन के पंखो पैर उड़न भरता मैं "समय"
जीवन का दंश और मृत्यु की अमरता के गूढ़ रहस्यों में खोया मैं "समय"
मैं पराक्रमी किन्तु निर्बल, मैं निरीह, मैं तुछ्य, मैं विराट, मैं नगण्य
जीवन का अविरल प्रवाह, प्राणवायु सा बहेता मैं "समय"

इत्तेफाक

आज का इत्तेफाक अजीब था,
कल का अंदाज़ दिल के करीब था,
कुछ यादें जो रूबरू अक्सर होती है,
आज उनका जिक्र बेतरतीब था ,
वो आइना तो आज सामने था,
पर उसमें दिखता वो चेहरा कुछ अजीब था |