Friday, April 28, 2017

भूल..

अब तो ईमेल पे हो जाया करती है बातें, हाँथो में कलम पकड़ना कुछ भूल गए
एक अदना कागज़ पे दिल निकाल के रखने वाले, अब दिल्लगी भी भूल गए |

सर्द रात है स्याह से अफ़साने, गली के मोड़ पे लोग अलाव जलना भूल गए
हम गुज़रे ज़रूर फिर उन्हीं रास्तों से, बस आप से नज़रे मिलाना भूल गए |

यूँ मसरूफ हुए उनके किस्सों में, हम अपनी दास्ताँ सुनाना भूल गए
चाहिए था कुछ वक़्त अपने लिए ज़िन्दगी से, बस जीने के बहाने भूल गए |







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