Tuesday, June 25, 2013

ख्याल

तेरी ज़िन्दगी और तेरे ख्याल में इतना ही फासला है
इक में मेरा वज़ूद फ़ना, दूजे में कायम है

ज़िन्दगी की रफ़्तार की ही ऐसी है और भागते जाने तुम्हारी फितरत
तुम रुको कभी कि हम भी तुम्हें छू के महसूस कर ले
और तुम्हारे फलसफात का जो एक दायरा सा है, उसमें इक चक्कर लगाये
बांधे कुछ धागे फिर गोलाई में, और रोक ले तुमको बहने से
तुम्हारी कशिश की इक परछाई शायद रूबरू हो जाये
और तुम फिर चहचहा पड़ो परिंदों की मानिंद
और कुछ आवाज़ सी गूंजे तन्हाई के वीरानो में
सुराही से डलते पानी की मानिंद
रूखे पत्तों पे पड़ते कदमों की सरसराहट
और ख्वाबों के डेर पे ज़मी धूल उड़ सी जाये
वो रौनके ख़यालात शायद फिर दहलीज़ पे लौटे
और कौन जाने फिर से कुछ मिसरे से बन जाये

पर तुम जो हो कि अफ्सानो का पुलिंदा
दर्मिया तुम्हारे कितने लफ़्ज संवर जाते है
बस एहसास ही नहीं होता तुम्हारे तस्सवुर का
बाकि तुम्हारे नाज़े - नखरों की बुलंदी मेरे ख्यालों तक कायम है

सुबह उठ के दावे पाँव चलना कि कोई खटपटी आवाज़ न हो
और पर्दों से छनती धूप पे तौलिये डालना कि कही आँख न खुले
दरख्तों पे बैठी चिड़िया से गुज़ारिश की धीमे गुनगुना
बस दर है किसी रोज़ यूँ ही आवाज़ों की रुकावट करते धड़कन न रोक दे हम
और तुम जो हमेशा ख्यालों में रही मुक्कम्मल सी मेरे सामने आ जाओ
बस यूँ ही कुछ वक़्त मेरे चाँद शेर सुनो और थोड़ी सी दाद दे जाओ
और बाकि ज़िन्दगी के मायने में ज्यादा रखा ही क्या है
कभी तुम दूर रहो कभी करीब आ जाओ
पैर वोह जो तुम्हारी शख्शियत का इक पैमाना है
कि जिस गूंचे गुलशन से गुज़रो सारा ज़माना महक जाये

पर तुम भी हो कि आज तक ख्याल हो, कभी तस्वीर ही बन के रूबरू तो आओ ...

2 comments:

  1. पर तुम भी हो कि आज तक ख्याल हो, कभी तस्वीर ही बन के रूबरू तो आओ ...
    lovely :)

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