Wednesday, July 30, 2014

वाक्या - भाग २ - ट्रेन की भुरके वाली लड़की

कामकाज़ के सिलसिले में किसी नए शहर जाना उसकी उसकी जीवनशैली से जुड़ने का सबसे नायब तरीका है स्थानीय परिवहन का उपयोग, सोचा लोकल ट्रैन के माध्यम से एक सिरे से दूसरे तक जाना आसान होगा..

ट्रेन का टिकट हाथ में लिए किस प्लेटफार्म पर जाया जाये की दुविधा, इन्क्वारी पर भीड़, इत्तेफ़ाकन कुछ लोगों से सुना की हमारी गाड़ी पांच नंबर पर है..हम तेज़ रफ़्तार से बढ़े ही थे कि पीछे से किसी ने पुछा "लिंगमपल्ली" की ट्रेन कौन से प्लेटफार्म पे है..पलट कर देखते है तो भुरके से ढकी एक लड़की, आँखें ही दिख रही ठगी उसकी पर आवाज़ का इत्मीनान बता रहा था कि चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट भी होगी भी, शायद एक सहगामी लड़की से उसे सही जानकारी की उम्मीद थी ..हमने दुविधा जाहिर कर दी, भाई हम नए है शहर में..पैर सुना कुछ लोगों को बता करते हुए की पांच नंबर पर आएगी, चलिए वही चल के देखा जाये..और शायद हमारी भावी सहयात्री ने भी यही सुना था ..वह और हम, दो बातूनी से साथ हो लिए, ऐसा नहीं की वह पूरी तरह अनजान थी इस ट्रेन से पर अकेले शायद पहेली दफ़ा सफर था उनका..घड़ी-घड़ी फ़ोन पर शायद अपने परिवार के लोगों को ट्रेन की यथास्थिति से अवगत भी करा रही थी .. मज़ेदार है यह टेक्नोलॉजी पर विस्वाश कि एक रूढ़िवादी घर की लड़की भी भुरका में ही सही अकेले सफर करने की हिम्मत कर सकती है, वाह मोबाइल फ़ोन.. इतना भरोसा तो है कि कुछ भी हुआ पल भर में घरवालों को खबर कर देंगे..

खैर उनका तो यह शहर था पर हम अजनबी होकर अकेले सफर कर रहे हैं इस पर काफ़ी ध्यान था उनका, और गज़ब की मानवीयता की बार - बार हमें बताया हमरे स्टॉप से तीन स्टेशन आगे आगे आपका स्टॉप है ख़ैरियत से उतर जाईयेगा ..

नाम इन मोहतरमा का भी नहीं मालूम हमें लेकिन उनका अपनापन और हमदर्दी बेबाक रही.. फिर एक बार मुस्कुराती ज़िन्दगी से मुलाक़ात हुई ..




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